आयुर्वेद में हमारी आयु को 4 अलग-अलग चरण में बांटा गया है:
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सुखायु: जिस व्यक्ति
- दुखायु: जो व्यक्ति जीवन को सरल तो बनाना चाहता है लेकिन उसके लिए आवश्यक कर्मो को करने से कतराता है ऐसा व्यक्ति दुखायु श्रेणी में आता है। ऐसे व्यक्ति को धर्म, कर्म, अर्थ और मोक्ष के मार्ग पर चलने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।
- हितायु: हितायु श्रेणी में वो व्यक्ति आता है जो दुसरो के सुख से जलन नहीं करता है। सदैव दुसरो के हित के बारे में विचार करके ही किसी काम को संपन्न करता है। हितायु में आने वाला व्यक्ति भी सुखायु श्रेणी के ही समान होता है।
- अहितायु: अहितायु श्रेणी में आने वाला व्यक्ति व्यभिचार को अपनाता है। दुसरो का अहित करके सदैव अपना लाभ चाहने वाला व्यक्ति कभी भी किसी का हित नहीं सोच सकता है। जो व्यक्ति बाहर और अस्वास्थ्यकर चीजों पर ज्यादा निर्भर होता है उन्हें अहितायु में शामिल किया जाता है।
आयुर्वेद से उपचार कैसे होते है:
कहते है की जिन रोगों का इलाज एलोपैथी के जरिये भी संभव नहीं है उन रोगों को आयुर्वेद के समाधानों से दूर किया जा सकता है। आयुर्वेदिक इलाज धीरे-धीरे असर करता है लेकिन इसकी ख़ासियत है की ये रोग को जड़ से खत्म कर देता है जिससे व्यक्ति को फिर से वही रोग होने का खतरा लगभग न के बराबर हो जाता है हालाँकि आयुर्वेदिक इलाज की प्रक्रिया काफी लम्बी और थोडा सी जटिल होती है।
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